तुम्हारा
कोई
जवाब
नहीं......
अनुराग यादव
Powered By
24by7publishing.com
प्रस्तावना
सम्बन्ध,रिश्ते,दोस्ती,प्यार और थोड़ा सा समय जिसमें हम ख़ुशी का अनुभव कर पाते हैं,वास्तव में एक ज़िन्दगी में इन सभी चीजों का होना जरूरी होता है।सम्भवतः सभी अपने जीवन में अलग-अलग परिस्थितियों और अनुभवों से होकर गुजरते हैं। तब ही उन्हें अहसास होता है,की ज़िन्दगी क्या होनी चाहिए थी,और क्या होगयी है।ठीक ऐसी कुछ अच्छी और प्यारी बातें,शरारतें,कुछ अच्छे दोस्त और उनकी दोस्ती कुछ अजीब और दिलचस्प नमूने प्यार के,जिसमें नायक और नायिका दोनों महसूस करते हैं,प्यार को लेकिन किन्हीं कारन वश कुछ घटनाएं और परिस्थितियों के कारण सीधे और सरल लगने वाली स्थिति कठिनाईपुर्ण प्रतीत होने लगती है।नायक अनिरुद्ध अपने प्रेम मार्ग पर असफल होते हुए केवल नायिका अर्चिता के लिए अपने मांगे गए जवाब का इन्तेजार करता है और किस प्रकार विषम परिस्थितियों में भी अपने प्रेम को अस्तित्व में रखता है।
एक कहानी जो उक्त विषय को बताये जब उस वक्त में प्यार की मौजूदा स्थिति दोस्ती और बाकी चीजें सामान्य थी ,दोस्ती तो हमेशा के लिए होती है,प्यार जब तक कहोगे नहीं तो मिलता नहीं,और जब चाहा जाय और न मिले और उसके बाद मिले तो क्या स्थिति होती है,या तो प्यार ही उचित था,दूसरी लड़कियां भी उचित थी,ये भी दुविधा रहने लगती है,मन में तब ये कहानी एक सकारात्मक ध्येय को लेकर चलती है,और बाकी सब पात्र भी आपस में किसी न किसी तरह से एक-दूसरे से जुड़े हुए रहते हैं।बेहद ही ज्यादा प्यार जब किसी से हो जाता है,और अचानक से वो मिल जाती है,तब भी बाकी स्थितियों के साथ-साथ कोई सफलता के साथ सभी चीजों को आसानी से अपना लेता है।जबकी अवसर उसके सामने एक से एक मिलते हैं,जिसमें की अपने प्यार को नजरअंदाज करके बाकी अवसरों से भरपूर लाभ उठा सके परन्तु उसने अपने प्यार के लिए इन सभी पर पर्याप्त नियंत्रण रखा। एक बार में ही किसी के बारे में किसी भी फैसले पर सोंचना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि हमे ज्यादा पता नहीं होता है,और ऐसे स्थिति में आप अपने प्यार को सिर्फ अपने दिल में ही नहीं बल्कि उसका आदर या फिर सम्मान करते हैं ,इसीलिए बाकी सभी प्रलोभन भी क्षणभंगुर होते है,इसलिए "एक रखो श्रेष्ठ रखो" । आइये आपका स्वागत है मेरी प्यारी सी कहानी " तुम्हारा कोई जवाब नहीं " में।
मैं बहुत लेट हो चुका था और देर नहीं करना चाहता था।मैं अपनी सीट पर बैठा ही हुआ था।कैसे जल्दी पहुँचूँ यही सोंच रहा था।मैं आस-पास की सभी चीजों को खिड़की देख रहा था।तभी बारिश की हल्की-हल्की बूंदें मेरी सीट की ओर पड़ने लगी।मैंने झट से खिड़की बन्द की,और मन में यही सोंचा की वहीं पहुंच कर साँस लूँ।ये बारिश की बूंदें बस यही जाहिर कर रही थी की आज भी वही मौसम है।जब मैंने उसे पहली बार देखकर इन्हें फील किया हो।तभी अचानक से मेरा फोन बजा मैंने उठाया।
उसने कहा आज लेट मत करना याद है,ना आज रवि और स्वपना की मैरिज एनिवर्सरी है।
मैंने कहा हाँ-हाँ याद है,ओके।
अचानक से ब्रेक लगी और मैं थोड़ा हिल गया।
उसने कहा क्या हुआ?
मैंने कहा बस रुक गयी है,बाद में बात करता हूँ।
बस में बहुत चिल्लम-चिल्ली का माहौल था।सब क्या हुआ-क्या हुआ ऐसा कह रहे थे।तभी बस तभिक कंडक्टर किसी से फोन पर बात कर रहा था।और बहुत ही ध्यान से बात करते हुए,हाँ-हाँ करके बात कर रहा था।
मैंने कहा अरे भाई क्या हुआ ?
कंडक्टर ने कहा हवा से कोई पेड़ गिर गया है,रास्ता साफ़ होने में थोड़ा टाइम लगेगा।
अब मैं क्या करूँगा यहीं अब तो और देर हो जाएगी।मैंने बस वाले को कहा कैसे पहुंचेंगे जल्दी ?
बस वाले ने बड़े ही सधे हुए अंदाज में कहा अब मौसम का तो कुछ नहीं कर सकते हैं ना भैया,जाओ कॉफी वगैरह पी लीजिए तब तक रास्ता भी ठीक हो जायेगा।
अब हल्की-हल्की उस बारिश में बस से उतर कर मैं अपने एग्जीक्यूटिव बैग को सिर पर रख कर एक में गया।वहां चाय की अच्छी खुसबु आ रही थी।मैं बैठ पाया ही था।सोंचा एक कॉफी मंगा लूँ।तभी मुझे एक लड़की की आवाज सुनाई दी- मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है,मैं जानती थी तुम भी औरों की तरह हो। मैं जब तक पलटा उसे देखना चाहा,पर उसकी शक्ल देख नहीं पाया वो उठ कर जा रही थी,उसे पीछे से ही देख पाया,और वह लड़का जो उसके साथ था।अब वहीं शांत बैठा हुआ था,टेबल में सिर टिका कर।
मैंने कहा चाचा कॉफ़ी लाना।
चायवाला ने कॉफी टेबल पर रखा और कहा कहाँ जा रहे हो बाबू।
मैंने कहा काम था थोड़ा आगे वाली कंपनी में आज जरूरी ही था जाना क्लोजिंग चल रहा है ना।
उसने कहा हाँ ,बाबू अब ये क्लोजिंग वगैरह तुम ही जानोगे।
मैं अब कॉफी के कप के ऊपर अपनी उँगलियाँ गोल-गोल घुम रहा था।तभी मेरी नजर उस लड़के पर पड़ी जो अब तक वहीं बैठा था।
मैंने कहा चाचा ये कौन है? यहां जो टेबल में अपना मुंह घुसाये बैठा है।
चाचा ने कहा कुछ नहीं बबुआ,ये पास वाले कॉलेज के लड़के-लड़कियां हैं जो कॉलेज की कैंटीन छोड़ यहां आते हैं।17 बरस हो गए देख रहा हूँ बाबू ऐसा तो यहां चलता ही रहता है।
मैंने कहा ऐसा है,क्या ? मैं अपनी कॉफ़ी की कप को उठाकर उस लड़के के टेबल पर रखा और पूछा मैं बैठ सकता हूँ क्या ?
उसने इशारे से ही हाथ दिखाते हुए अपने टेंसन को दिखाया।
मैं समझ गया वो बात करने के मूड में नहीं है।पर मेरे अंदर जो मस्ती थी उसे आज निकालना चाहता था।
मैंने कहा क्या हुआ दोस्त इतना क्यों परेशान हो ?
उसने कहा ये प्यार की बात है,आप न समझोगे।
फिर थोड़ी ही देर में चाचा टेबल पोछते हुए हमारी ओर आए और खाली कप ले गए।और उन्होंने कहा छोड़ दो बाबू इसे आखिर भरी बारिश में ही तो इसका दिल टुटा है।
उसने कहा आपलोग को कुछ समझ नहीं आएगा,क्योंकी ये आपके लिए मजाक लग रहा है।
मैंने कहा चचा,बारिश का तो अपना ही मजा है।मेरी कहानी भी इस बारिश से जुडी हुई है।
चाचा ने कहा कैसे बबुआ क्या हुआ था ?
मैंने कहा तो सुनेंगे मेरी कहानी।
वो लड़का मुझे ही ध्यान से देख रहा था।मैं समझ ही चूका था की उसका आधा से ज्यादा ध्यान मेरी बातों पर ही दे रहा था।मैं जनता था वो मेरी कहानी सुनना चाहता था।उस लड़के ने पुछ ही लिया बताइये ना क्या हुआ था।आपके साथ।
तब मैंने कहा बहुत लम्बी कहानी है।
वो बारिश अपने साथ-साथ मुझे भी बहा ले गयी जहां मैंने उसे पहली बार देखा था।वो बहुत ही ज्यादा खूबसूरत नजारा था।
1
उस दिन की बारिश शायद ही में भूल पाऊंगा क्योकि इसी दिन तो मैने उसे देखा था ,और मैं अपनी बाइक पर बैठा हुआ था ,और सिग्नल ग्रीन होने का इन्तेजार कर रहा था तभी अचानक से मेरी बाइक को पीछे से किसी ने ठोकर मारी मै पीछे की ओर जैसे ही मुड़ा (गुस्से में) मेरा सारा ग़ुस्सा छूमंतर हो गया ।वह एक लड़की थी वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी उसके बाल उड़ उड़ कर उसके चेहरे पर ही आ रहे थे और वो स्माइल किये जा रही थी मैंने भी उसे स्माइल दे दी फिर मैने उसे कहा- थोड़ा देखकर चलाया कीजिये मेडम तभी उसने उत्तर देने की कोशिश की पर ग्रीन सिग्नल होने के कारण वो चली गयी,फिर मैं भी अपने काम पर निकल गया,रास्ते भर मैं उसके बारे में ही सोंचता हुआ आगे बढ़ रहा था।
मैने अपना ग्रेजुएशन भी पूरा कर लिया था और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए सोंच रहा था वैसे तो ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई कॉलेज में ही हो गयी थी पर एम् कॉम के लिए यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाह रहा था ,मैं कुछ ही दिनों में रायगढ़ यूनिवर्सिटी में एड्मिशन के लिए गया ,उस लड़की को देखे कुछ ही दिन हुए थे फिर भी मैं उसे भुला नहीं पा रहा था, उसकी हरेक स्थिति मेरे दिमाग में पूरी तरह बसी हुई थी, फिर भी मैं उसे याद नहीं करना चाह रहा था।
फिर यूनिवर्सिटी की ऑफिस की ओर बढ़ा फिर देखते ही देखते वहाँ एडमिशन की लम्बी भीड़ लग गयी। सभी रेगुलर स्टूडेंट भीड़ लगा रहे थे। फिर मैंने एक चपरासी जो की अपने मुह में पान चबाते हुए किसी स्टूडेंट से बात कर रहा था।दूर से ऐसा लग रहा था,जैसे वो लोग किसी सौदे की बातें कर रहे थे।
फिर मैं भी उसी चपरासी के पास गया और उसे कहा-"भैया नमस्ते"
फिर उसने कहा-"नए आये हो लगता है"
मैंने कहा-हाँ भैया मुझे एम कॉम में एडमिशन चाहिए रेगुलर में
फिर उसने अपने भौंहे ऎसे सिकोड़ी जैसे मैंने उसे दो थप्पड़ लगा दिए हों। फिर वह पान चबाते हुए बोला,ठीक है मैं सिर्फ फॉर्म पास करा सकता हूँ एडमिशन की गारंटी नहीं है, तो मैंने कहा गारंटी किस चीज़ में है,
उसने कहा-प्राइवेट एग्जाम दिला लो,
मैंने कहा - प्राइवेट ही देना होता तो यहां क्यों आता,
फिर वह मुझे बोला थोड़ा खर्चा करना पड़ेगा ,
मैंने कहा-कितना,तो उसने कहा-एक हज़ार रुपया,
तो मैंने कहा- इतनी तो एडमिशन की ही फ़ीस है,तो उसने कहा रास्ता नापो या चलते बनो,इतनी लम्बी लाइन देख के मेरा दिमाग लगभग खराब हो ही चूका था,फिर भी मैं थोड़ी सन्तुलित हालत में था,
मैं ऑफिस से बाहर आकर कैंपस में घूमने लगा कुछ लड़कियां झुण्ड बनाकर गप्पे हाँक रही थी,मेरा ध्यान दीवाल के कोने पर खिड़की के पास बैठी एक लड़की पर पड़ा हवा चल रही थी और उसके बाल हवा में उड़- उड़ कर उसके चेहरे पे आ रहे थे,मैंने देखा वह एडमिशन फॉर्म भरने की कोशिश कर रही थी,फिर मैं उसके पास गया,
मैंने बोला हाय,
उसने भी बोला हाय,
फिर मैंनेअपना नाम बताया।मैं अनिरुद्ध सिंह और आप, तो उसने कहा देबिना मल्होत्रा फिर हमने कुछ बातें की और मैंने उससे कहा कौन सी क्लास के लिए एडमिशन है,उसने कहा एम् कॉम प्रीवियस ,मैंने कहा कूल..... मैं भी इसी क्लास में हूँ तो उसने कहा फर्क नहीं पड़ता तो मैंने कहा "क्या" फर्क नहीं पड़ता तो उसने बड़े ही चालाकी से बड़े ही सधे हुए अंदाज़ में कहा मेरा यह मतलब नहीं था मैं तो सिर्फ यूँ ही कह रही थी,क्योंकि यहाँ एडमिशन लगभग नामुनकिन साबित हो रहा है,फिर मैंने कहा बिलकुल मेरा भी कुछ ऐसा ही मानना है,
फिर उसने कहा-"साला ऐसी सिचुएशन में सोर्स लगाने से भी एडमिशन हो जाता है,लेकिन वही बात है,प्रोफेसर लोग मिल के वाट लगाते है,बाद में"
फिर मैंने कहा ठीक बोल रही हो तुम
फिर मैंने उसका फॉर्म फिल कराने के बाद हम दोनों कैंपस टहलते हुए ऑफिस की ओर गए मैं अब भी उस पान खाने वाले चपरासी को देख सकता था वह अपने कस्टमर की तलाश में यहाँ-वहाँ देख रहा था,फिर उसने हवा में इशारा किया उसका इशारा मेरी ओर बिल्कुल नहीं लग रहा था। वह एक लड़के को कुछ पैसे के लिए बुला रहा था।
देबिना ने मुझसे कहा तुम जानते हो उसे
मैंने कहा नहीं तो
उसने कहा ब्रोकर है ये एजुकेशन फिल्ड को ऐसे ही ब्रोकरों ने लूटना शुरू कर दिया है।
मैंने कहा अच्छा,
तो उसने कहा सच्ची
फिर लाइन बहुत लम्बी थी पता नहीं था की जमा कर पाउँगा या नहीं फिर मैं वहाँ खड़ा रहा। वह भी मेरे साथ ही थी ,हमदोनों लाइन में खड़े-खड़े बात कर रहे थे, हम दोनों बातों में इतने व्यस्त थे की समय का कुछ पता नहीं चल रहा था फिर उस पान वाले चपरासी ने कहा काउंटर बन्द होने वाला है चलिये-चलिये अब निकलिये।
फिर मैंने उससे कहा ठीक है मैं अब जा रहा हूँ,तो देबिना ने कहा जा रहा हु नहीं आ रहा हूँ ऐसा बोलते है,तो मैंने कहा ठीक है, इन सब बातों के बाद-
मैंने कहा कल आओगी क्या?
उसने कहा क्या लगता है?
मैंने कहा आओगी लगता है।
उसने कहा ह्म्म्म
मैं समझ रहा था की वह आएगी मैंने कहा तुम्हारा नंबर मिलेगा तो उसने कहा श्योर तो मैंने कहा बताओ फिर मैंने नंबर सेव करके कॉल किया उससे कहा सेव क्र लेना यह मेरा नंबर है,फिर मैं घर आया। पूरी तरह से थक चूका था , मेरा दिमाग भी ठीक नहीं लग रहा था,मैं खाना खा कर सो गया सो कर उठा तो रात हो चुकी थी,फिर मेरे दोस्त जो स्कूल तक मेरे साथ थे,उन्होंने मुझे उठाया और बोले कुम्भकर्ण भी शाम से रात तक नहीं सोता होगा ।
मैंने कहा ओके-ओके, फिर उन्होंने कहा जाओ कॉफी बनाना हमलोगों के लिए मैंने कहा ठीक है। मेरे साथ मेरे तीन दोस्त भी रहते थे ।हमलोग एक अपार्टमेंट में रहते थे,फिर उसने कहा और बता हुआ तेरा एडमिशन मैंने कहा नहीं हुआ है तो उसने कहा वहां एक पाँचुक है उसे बोलना हो जायगा । मैंने कहा कौन पाँचुक तो उसने कहा अरे वही जो बहुत पान चबलाता रहता है।मैंने कहा अच्छा वो तो ब्रोकर है,फिर अर्जुन ने कहा,राहुल तू पाँचुक को कब से जानता है,मैंने कहा पाँचुक ये भी कोई नाम है, तो राहुल ने कहा पाँचुक उसका नाम नहीं है,स्टूडेंट्स उसे ऎसा कहते है,मैंने कहा -ओह ऐसा क्या,फिर मैंने कहा मुझे तो नींद नहीं आएगी आज तो तुम लोग मूवी देखोगे आज रात तो सभी ने कहा मन नहीं है।सुबह बहुत काम है,लेट नहीं होना चाहते हैं। तो मैंने कहा ठीक है,हम सभी ने रात का डिनर साथ में किया और सभी सोने चले गए मुझे नींद नहीं आ रही थी।
बार-बार दिमाग में एक ही दृश्य चल रहा था वो था बस वो लड़की मेरी बाइक बार-बार ठोक रही थी,और मैं उसे स्माइल ही दिया जा रहा था,फिर कुछ देर बाद मैंने अपना मोबाइल देखा उसमें 17 मिस्ड कॉल्स थे जिसमें से 4 कंपनी वाले नम्बर थे 6 मिस्ड कॉल देबिना के थे और 7 मिस्ड कॉल अनजान नम्बर के थे। मैं समझ गया ये अनजान नम्बर देबिना ने ही किये होंगे फिर मैंने सोच कर ही लेता हूँ कॉल ,फिर मैंने कॉल किया उसने तुरन्त ही कॉल उठा लिया फिर मैंने कहा कुछ काम था क्या? उसने कहा हाँ मेरी पेन शायद तुम्हारे पास ही रह गयी है, मैंने कहा पता नहीं रुको,फिर मैं अपने पेंट के पॉकेट्स को टटोला तो वाकई उसका पेन था,मैंने कहा ओह ऍम सॉरी मुझे पता ही नहीं चला कब मेरे जेब में आ गया, उसने कहा कोई बात नहीं।और बताओ क्या चल रहा है,मैंने कहा कुछ नहीं बस सोने का नाटक कर रहा हूँ पर सो नहीं पा रहा हूँ,उसने कहा कुछ प्रॉब्लम है क्या मैंने कहा नहीं ऐसी बात नहीं है, शाम में सो गया था ना इसी वजह से नींद नहीं पड़ रही है,उसने कहा ओह ऐसा मैंने कहा ठीक और बताओ क्या चल रहा है,तो उसने कहा कुछ नहीं टी.वी. पर मूवी चल रही है "एक्स मैन डेज ऑफ़ फ्यूचर पास्ट" मैंने कहा ठीक तुम्हे एक्शन पसन्द है।
और बताओ कल आओगी ना कॉलेज
उसने कहा हाँ बा बा आउंगी
मैंने कहा ओके गुड नाईट
उसने भी कहा गुड नाईट,स्वीट ड्रीम
फिर मैंने कॉल रख दिया ।
फिर मैंने सोंचा मैं कुछ भूल रहा हूँ थोड़ा देर मैं अपने कमरे में अलग-अलग जगहों पर खड़ा होकर याद करने की कोशिश कर रहा था की मैं क्या सोंच रहा था,फिर याद आया की मैं उस लड़की के बारे में सोंच रहा था।फिर मुझे नींद भी नहीं आ रही थी मैं टेबल पर बैठे-बैठे सोंच ही रहा था की क्या करूँ तभी अचानक से कुछ लिखने का मन किया मैंने कई कविताएँ लिखी थी पर सभी मेरी ज़िन्दगी से वास्ता रखती थी।पर इस बार मैं कुछ नया और अलग लिखना चाहता था।फिर मैंने पेपर पेन लिया सोंचने लगा। फिर लिखना शुरू किया कुछ लिखने को शब्द ही नहीं मिल रहे थे।बस उसका चेहरा बार-बार मेरे नजरों के सामने आ रहा था। फिर मैं अपने बिस्तर पर चला गया और सोने लगा नींद तो आ नहीं रही थी फिर भी मैं सो गया और सुबह उठा और नहा कर फ्रेश होकर चाय नाश्ता किया और कॉलेज के लिए निकला और ठीक उसी वक्त मेरी बाइक स्टार्ट नहीं हो रही थी।
तभी राहुल ने कहा रवि तेरी बाइक में थोड़ी जगह है,तो अनिरुद्ध को कॉलेज ड्राप कर देना,मैंने कहा ओके ,रवि मेरे चौथे नम्बर का फ्रेंड था जो हमारे ही साथ अपार्टमेंट में रहता था,वह ही हमारा नाश्ता और डिनर तैयार करता था,फिर उसने मुझे कहा कॉलेज से घर ऑटो रिक्शा में चले जाना मुझे काम के बिच में आते नहीं बनेगा मैंने कहा ओके फिर वह मुझे कॉलेज में छोड़ कर चला गया,और मैं कॉलेज के भीतर चला गया और फिर से लाइन में खड़ा हो गया मेरी नम्बर लाइन में 17 या 18 थी,फिर मैंने अपने फोन में डाइल्ड नंबर्स को देख रहा था फिर मैंने सोंचा देबिना को फोन करता हूँ ,
फिर मैंने उसे फोन किया
उसने कहा हेल्लो अनिरुद्ध तुम कहाँ हो?मैं कॉलेज में हूँ तुम्हारा इन्तेजार कर रही हूँ।
मैंने कहा मैं भी कॉलेज में हूँ लाइन में हूँ फॉर्म जमा करने के लिए
उसने कहा रुको मैं अभी आती हूँ।
उसने पिंक कलर का टॉप पहन रखा था तथा लिवाइस की फिट जीन्स पहन रखी थी वह बहुत ही आकर्षक लग रही थी , मैंने कहा बस कुछ ही देर में मेरा फॉर्म भी जमा हो जाएगा उसने कहा देखते है,फिर उसने अपने कर्ली हेयर पर ऊँगली फेरना शुरू कर दिया और बहुत ही सधे हुए शब्दों में मुझे अपनी फॉर्म की फ़ाइल पकड़ा दी और मेरे साथ बात-चित करने लगी मैं भी बस अपनी पारी का इन्तेजार कर रहा था।पर क्या करता मेरे पास उसके बातों के आलावा कोई दूसरा टाइमपास नहीं था।उस लम्बी लाइन में फिर मेरा नम्बर आया मैंने अपना फॉर्म सबमिट किया उसने पूरी तरह से देखा फॉर्म फिर एप्रूव की सील लगा दी फिर मैंने पलट कर पीछे देबिना की ओर देखा वो बहुत ही सेक्सी अंदाज़ में अपने बालों से खेल रही थी,तथा अपनी टांगे हिला रही थी, मैनें स्माइल दिया उसे,फिर उसका फॉर्म जमा कर दिया उसने उसके फॉर्म को ज्यादा गौर से नहीं देखा सीधा एप्रूव कर लिया। फिर मैं लाइन से हट कर बाहर देबिना के पास आ गया उससे कहा की फॉर्म जमा होगया।
उसने कहा एडमिशन कब कराना है, पूछा क्या?
मैंने कहा नहीं,
उसने कहा जाओगे क्या ?
मैंने कहा बहुत भीड़ है और नहीं जाऊंगा मैं,
वो चली गयी और बहुत ही सेक्सी अंदाज़ में काउंटर में बात करने लगी मुझे पता नहीं क्यूँ अच्छा नहीं लग रहा था,खैर गलती भी मेरी थी, मुझे ही जाना चाहिए था, फिर वह आयी और मुझे बताया की उसका और मेरा एडमिशन के लिए नंबर रजिस्टर पर आगे-पीछे है,मतलब दोनों मे से कोई भी एडमिशन वाले दिन आकर एडमिशन करा सकता है,मैंने ज्यादा कुछ सोंचा नहीं सीधा बोल दिया उसे मैं कर दूंगा। उसने कहा ओके फिर उसने कहा तुम अपनी बाइक लाये हो तो मुझे अचानक से उसी लड़की का ख्याल आया जिसने मेरी बाइक ठोकी थी। फिर मैंने कहा नहीं लाया हूँ आज,क्यूँ उसने कहा कुछ नहीं यूँ ही घूमते थोड़ा मैंने कहा ओह,ऎसा क्या कल से डन ,वह दांत दिखाते हुए मुस्कुराई, फिर उसने कहा चलो कैंटीन चलते हैं,मैंने कहा ओके फिर हमदोनों कैंटीन में बैठकर कॉफी पी रहे थे और बातें कर रहे थे,की किस तरह की पढ़ाई यहां देखने को मिलेगी फिर,हमदोनों ने अपनी कॉफी खत्म की और कॉलेज कैंपस में घूमने लगे तभी उसने घर के बारे में बातचित शुरू कर दी फिर उसने मम्मी,पापा,बहन और भाई की बातचीत शुरू कर दी,फिर वह बतायी ही जा रही थी मैं सुनता ही जा रहा था, फिर उसने पूछा तुम्हारी फैमिली मैंने कहा मैं अपने फ्रेंड्स के साथ रहता हूँ ।
उसने कहा और मॉम डैड
मैंने कहा हैं ना पर डैड अपने बिज़नस में बिजी रहते है,और मॉम और छोटा भाई घर पर ही रहते हैं और मैं अपने दोस्तों के साथ रहता हूँ कोई प्रॉब्लम नहीं यार बस मुफ़्त की लड़ाई और टेंशन लेना मैं पसन्द नहीं करता हूँ,
उसने कहा तुम्हें उनकी याद नहीं आती है तो मैंने कहा आती तो है पर लड़ाई-झगड़े की बातें सुन कर चली भी जाती है।
फिर उसने कहा ठीक है,सोमवार को तुम जरूर आना और एडमिशन फी जरूर जमा कर देना मैंने कहा ओके,फिर मैं अपने अपार्टमेंट जाने के लिए साधन जुगाड़ रहा था,तभी मेरे सामने देबिना अपनी स्कूटी में आई फिर-
मैंने कहा ग़ज़ब तुम स्कूटी भी चलाती हो
तो उसने कहा हाँ बिलकुल उसने कहा लिफ्ट चाहिए
मैंने कहा बेशक
तब मैं उसकी स्कूटी में बैठ गया और वो शहर के दुकानों वाले रास्ते से घूमाते हुए मुझे पुछी कहाँ जाना है,मैंने कहा ,आगे जो चौक आएगा वहाँ छोड़ देना।उसने कहा ठीक, उसने चौक पर मुझे छोड़ा मैं उसे बाय करके इसके जाने का इंतज़ार किया फिर आगे कुछ दूर चलकर बिल्डिंग तक पहुंचा और अपने अपार्टमेंट में जाकर बेड में लेटकर चैन की साँस लिया। फिर दूसरा दिन सन्डे था।पूरे दिन उसकी बातें मेरे कानों में गूँज रही थी।आधी से ज्यादा बातें तो मेरी समझ में नहीं आयी।फिर मैं रात को डिनर के बाद सो गया,मेरे दोस्त दूसरे दिन सन्डे होने के कारण रात भर फ़िल्म देखते रहे और देरी से उठे मैं सुबह उठ कर थोड़ा बाजार की तरफ चला गया और सब्जियां लेना शुरू कर दिया तभी मैंने उस लड़की को देखा जिसने मेरी बाइक को ठोंका था,फिर मैंने सोंचा उससे बात करता हूँ, जैसे ही मैं उसकी ओर बढ़ने की कोशिश किया तभी अचानक से एक लड़का भी मुझे दिखाई दिया जिससे वह हंस-हंस कर बातें कर रही थी,और फिर क्या था ,मैं जल्दी-जल्दी सब्जियां लेकर बाजार से बाहर जा रहा था ।तभी फिर अचानक किसी ने मेरी बाइक ठोंकी मेरा दिमाग ऎसी ही गरम था मैंने गुस्से से पीछे देखा तो वही लड़की थी,मुस्कुरा रही थी,मैंने भी स्माइल किया,फिर मैंने उससे बातचीत शुरू की और रास्ते भर बात करते हुए हम बढ़े।
मैंने उससे उसकी कॉलेज के बारे में पूछा
तो उसने कहा-रायगढ़ यूनिवर्सिटी
मैंने कहा कमाल है,मैं भी वहीं पढ़ता हूँ
तो उसने कहा अब ये मत बोलना एम कॉम प्रीवियस
मैंने कहा-सच्ची में मैं भी यही पढ़ता हूँ।
फिर उसने कहा-ओके बाय,फिर मिलेंगे, मुझे आगे से लेफ्ट लेना था।फिर मैं अपने अपार्टमेंट की ओर चला गया,और सब्जियां धोकर फ्रीज़ में रख दिया,मेरा दोस्त रवि सभी के लिए सुबह का नास्ता बना चूका था,जो की लंच था हमारा हम सभी ने किया।उसके बाद हमलोग टीवी देखने लगे टीवी पर एक कॉमेडी मूवी आ रही थी,चुप चुप के जिसमें परेश रावल बहुत ही हास्यास्पद अभिनय करता हुआ दिखाई देता है,हम सभी,हंस-हंस के पागल हो गए थे। तभी सब थक के टीवी बन्द करके सो गए ,शाम को जैसे ही मेरी आँखें खुली मैंने कॉफी बनाई फिर हम सभी ने कॉफी पिया और कुछ-कुछ बातें करने लगे। फिर मैंने मेरे दोस्तों को देबिना के बारे में बताया,
उन्होंने कहा-तू उसे पसन्द करता है,
मैंने कहा-नहीं तो,
उन्होंने कहा-क्या वो तुझे पसन्द करती है,
मैंने कहा -पता नहीं,
उन्होंने कहा-तो तु किसे पसन्द करता है,
मैंने कहा है कोई जो किसी और से सेट है,
उन्होंने कहा -नाम उसका ?
मैंने कहा -पता नहीं पर पहले उससे मिल चूका हूँ,
उन्होंने कहा-कैसे ?
मैंने कहा-एक दो महीने पहले उसने मेरी बाइक को ठोका था,पीछे से तो मैंने देख लिया था उसे।
उन्होंने कहा-कुछ बात किये उससे ,मैंने कहा-बस स्माइल किया था,उन्होंने कहा-बहुत अच्छा किया,मैंने कहा-फिर आज मार्केट में मिली थी बहुत बात किया,बस नाम नहीं पूछा, उन्होंने कहा-भग बे देहाती पूछना था,ना नाम मैंने कहा- अरे यार सेम कॉलेज सेम क्लास स्टूडेंट है वो,उन्होंने कहा-अच्छा लगे रहो।
2
अगले दिन सोमवार था और मैं कॉलेज के लिए तैयार हो चुका था।और फिर बाइक पर कॉलेज के लिए निकल गया। और देबिना वहाँ मेरा इन्तेजार कर रही थी।फिर हम दोनों क्लास की ओर चले गए,थोड़ा प्रो. के लेक्चर अटेंड किये थोड़ा शब्द थोड़ा कम होना इसके लिए अग्निहोत्री सर बहुत अच्छे से समझाते थे किसी भी मुद्दे को पूरा 2 घण्टे लगातार लेक्चर सुन-सुन के दिमाग खराब हो गया था।फिर लेक्चर के बाद देबिना अपने कुछ दोस्तों से बातें कर रही थी।मुझे कुछ किताबें इशू करवाने थे,तो मैं लाइब्रेरी चला गया तभी उस लड़की को देखा जिसने मेरी बाइक और ज़िन्दगी दोनों को ठोंका था।फिर मैं गया और अपने क्लास की सिलेबस वाली लिस्ट में सब्जेक्ट्स देख रहा था,मुझे किताबें ढूंढनी थी,मैं ढूंढना शुरू किया,वहाँ एक लड़का था बहुत ही शांत और चुपचाप था उसने कहा पर्ची दिखाओ तो मैंने जो नोट किया था,सब्जेक्ट्स नेम सिलेबस वाला वो दे दिया वो बोला थोड़ी देर आप बैठिये मैं किताबें निकल कर लाता हूँ।मैंने इधर-उधर देखा और जाकर उसी लड़की की बाजु में बैठ गया और मन में सब्जेक्ट्स को क्रम से बड़बड़ा रहा था,ताकि मेरा समय बीत सके,
तभी वो एकदम से मेरी ओर देखी और बोली क्या हुआ ?
मैंने कहा-कुछ नहीं,अचानक से मन में तेजी से बोलने के कारण फाइनेंसियल मैनेजमेंट मुँह से निकल गया ,तो उसने कहा-ये वाली किताब नहीं मिलेगी तुम्हें क्योंकि कुछ ही बचे थे,तुम लेट हो गए इसके लिए।
मैंने कहा-"ओह ऎसा क्या?"
उसने कहा-"अगर तुम चाहो तो मुझसे किताब उधार ले सकते हो,
मैंने कहा-ठीक है,फिर इतने में ही वह शांत लड़का जिसने मेरी मदद की थी किताबें निकालने में वह पर्ची और किताबें लेकर उपस्थित हो गया,वह पर्ची से नाम पढ़-पढ़ कर किताबें मिला रहा था,और बार-बार उसी लड़की की ओर देख रहा था,
उस लड़के ने कहा-आप अनिरुद्ध सिंह हो,
मैंने कहा-हाँ,
उसने कहा-आपकी बारी आ गयी है,फ़ीस जमा करने की।
मैंने कहा-"ओह सिट" आज तो फ़ीस जमा करना है,वरना देबिना मेरा बैंड बजा के ही छोड़ेगी।
मैं तुरन्त ऑफिस में पहुंच कर फ़ीस जमा किया और थोड़े देर में वह पान खाने वाला चपरासी फ़ीस की रशिद लेकर बाहर आया और मुझे दिया मैं तुरन्त ही क्लास की ओर गया तभी क्लास के बाहर वही लड़की खड़ी थी।
मैंने उससे कहा-मुझे अभी तुम्हारी किताब लेनी है,
उसने कहा-ओके ,उसने किताब दिया।
फिर मैं क्लास में गया देबिना अपने दोस्तों से बातचीत कर रही थी मैंने उसको उसकी रशिद दे दी उसने थैंक्स कहा,मैंने कहा-दोस्ती में नो सॉरी नो थैंक्स,ये थोड़ा फ़िल्मी था फिर भी काम चल गया। और मैं अपनी किताबें बैग में रख ही रहा था,तभी कुछ किताबें नीचे गिर गयी देबिना मेरी किताबें उठाने के लिए झुकी मैं भी झुका हमारी सांसे एक-दूसरे को महसुस हो रही थी हम कुछ देर तक एक-दूसरे को देखते रहे फिर उसने किताबें उठाकर दी उसमें से एक पर्ची गिरी उसमें सिलेबस और सब्जेक्ट्स के नाम थे।और सबसे नीचे नाम लिखा हुआ था अर्चिता गर्ग।
उसने कहा- कौन है ये।
मैंने कहा -तुम नहीं जानती क्या इसे?
उसने कहा-नहीं क्या तुम जानते हो इसे(गुस्से से)
मैंने कहा हा भी नहीं भी हमारे क्लास में पढ़ती है,
उसने कहा-कहाँ है अभी वो,
मैंने कहा-अभी बाहर है,
उसने कहा-चलो दिखाना मुझे,
मैंने कहा-ओके ,
हम कॉलेज कैंपस में घूम रहे थे,मैंने इशारे से उसे दिखाया देखो वहां कैंटीन के पास सफ़ेद चूड़ीदार वाली लड़की,उसने कहा-रुको मिलके आती हूँ।मैंने कहा-मैं भी चलता हूँ।मेरे मन में एक ही बात चल रही थी और वो यह थी की उसका नाम बिलकुल उसके इतना ही प्यारा है,फिर हम कैंटीन में पहुँचे और मैंने बातचीत शुरू किया मैंने देबिना को अर्चिता से परिचित करवाया,वो दोनों घुल-मिल गयीं और बहुत बातें कर रही थी।और मुझे ऐसा लग रहा था की इनकी बातों के कारन ये व्यस्त हो रहे हैं और मुझे नजरंदाज़ कर रहे है।फिर मैं एक किनारे में बैठ के कॉफी पिने लगा इतने में अग्निहोत्री सर आ गए और मेरे सामने बैठकर ही चाय पिने लगे।मैं उन्हें देखकर गुड मॉर्निंग सर कहा।उन्होंने कहा-मॉर्निंग।
उन्होंने कहा-"कैसी चल रही है पढ़ाई
मैने कहा-अभी-अभी तो शुरू किया हूँ पढ़ाई।
उन्होंने कहा और तुम्हारी पार्टनर देबिना उसकी पढ़ाई।
मैंने कहा -पता नहीं शायद उसने पढ़ना शुरू कर दिया हो।
उन्होंने कहा-अर्चिता को जानते हो,
मैंने कहा -हाँ सर ,क्यों?
उन्होंने कहा-उसके परसेंट हर साल अच्छे आते हैं।
मैंने कहा -अच्छा है,
मेरी कॉफी लगभग खत्म होही चुकी थी।मैंने कहा-ठीक है,सर चलता हूँ,और देबिना के पास पहुँच गया,मैंने कहा-अर्चिता कहाँ गयी,उसने कहा-क्यों कोई काम था,मैंने कहा नहीं,उसने कहा-"आज कहीं घूमने चले ,मैंने कहा- नहीं आज नहीं आज मन नहीं है,मुझे पढ़ना है,और मैं उसे बाय बोल कर घर की ओर आ गया।थोड़े देर आराम करने के बाद मैं फ्रेश होगया और शाम के 4 बज रहे थे,थोड़ी कॉफ़ी बनाया और बालकनी में बैठ कर आराम से पी रहा था, और बार-बार यही बात सोंच रहा था,की काश आज उससे नम्बर ले लेता पर मेरी कोई गलती नहीं थी,और कुछ के लिए देबिना वाले सीन पर जोर देकर सोंचने लगा जब मेरी किताबें गिरी थी और हम एक-दूसरे की सांसों को महसूस कर पा रहे थे।पर यह सीन मुझे पसन्द आते हुए भी अर्चिता की याद दिला रहा था,काश वह यहां होती और मेरी मदद करती किताबें उठाने में,फिर कुछ देर बाद मेरे दोस्त भी आ गए रवि,अर्जुन और राहुल के आने के बाद सीधे बेड पर लेट गए और आराम करने लगे वो सभी थक गए थे।फिर वो फ्रेश हुए और कॉफी पिते-पिते बातचीत करने लगे और मुझसे पूछने लगे कैसा रहा आज का दिन,मैनें कहा-ठीक रहा।
रवि ने कहा-नाम पूछा उसका ?
मैंने कहा-नहीं पर पता चल गया,अर्चिता गर्ग है नाम।
उन्होंने कहा -दिखने में कैसी है,
मैंने कहा-अच्छी है,पर भाभी है,तुम्हारी,
उन्होंने कहा-भाभी हॉट है क्या ?
मैंने कहा- चुप करो कमीनों अपना मुँह बन्द करलो ।
फिर देखते ही देखते रात होगयी और डिनर मेरे दोस्त रवि ने तैयार किया और हम सभी डिनर के बाद टीवी देखते-देखते सो गए,दूसरे दिन कॉलेज के लिए तैयार होकर मैं निकला और ट्रैफिक फिर से भीड़ थी,थोड़ी देर में ट्रैफिक क्लियर हुआ और मैं सीधे कॉलेज की ओर गया।और सीधे क्लास में चला गया और क्लास अटेंड करने लगा ये पीरियड दीपाली मैम का था,मैं लेट हो चूका था,अग्निहोत्री सर जा चुके थे।दीपाली मैम ने सभी को प्रश्न दिए थे हल करने के लिए सभी बनाने की कोशिश कर रहे थे। मै भी कोशिश कर रहा था,पर मैं समझ नहीं पा रहा था,पर करूँ क्या ?
दीपाली मैम मेरे पास आयीं और बोली बन रहा है प्रश्न,
मैंने कहा-नहीं मैम समझ नहीं आ रहा है।
तभी उन्होंने पूरा प्रश्न अच्छे से समझाया और मेरे समझ में भी आया।
मैंने कहा-थैंक यु मैम,
उन्होंने कहा-मेहनत करो पढ़ाई में,
मैंने कहा-ठीक है मैम,
और फिर मैंने देबिना से पूछा आज अग्निहोत्री सर ने क्या-क्या पढ़ाया उसने कहा-कुछ नहीं बस पुराना ही कुछ टॉपिक क्लियर किये हैं,और मैंने पलट के अर्चिता की ओर देखा वो भी स्माइल कर रही थी।बस इसी तरह से मेरी जिंदगी चल रही थी।
"केवल उसी स्माइल का इंतजार करना जिसका की मैं इंतजार करता था।और होना भी चाहिए की ऐसी चीज जिसे आप बेहद पसन्द करते हो,आप ऐसी चीजों के करीब या उनसे ख़ुशी की उम्मीद रखते हो।"
मेरा भी कुछ ऐसा ही मानना था।फिर मैं क्लास रूम से बाहर आकर कैंपस में घूमना शुरू कर दिया।फिर मेरे पीछे-पीछे जूते की जमीन से घिसटती हुई आवाज आ रही थी।पर मैं आगे बढ़ता ही रहा और चुपचाप कैंटीन में बैठ गया।
फिर देबिना ने मुझसे आकर पूछा -क्या हुआ कोई बात है,
मैंने कहा-नहीं,
उसने कहा-सन्डे को मेरे साथ मूवी देखने चलोगे,
मैंने कहा-जरूरी है,
उसने कहा-हाँ बेशक,
पर मैं उसे सीधे-सीधे मना भी नहीं कर सकता था,पर क्या करता उसे ओके कह दिया।
लेकिन मैं उसके साथ रहना नहीं चाहता था।पर क्या करता वह एक बोझ की तरह थी मेरे लिए।फिर मैं कॉलेज से घर की ओर चला गया,और फिर वही सब्जी,दाल-रोटी जो मेरे दोस्त रवि ने बनाया था,उसे हम सभी दोस्तों ने डिनर के रूप में खाये और सो गए। सुबह उठकर मैंने मोबाइल चेक किया उसमें दो मिस कॉल और एक मेसेज था,जिसमें ओके चलेंगे मूवी,ये अर्चिता का मेसेज था,मैंने कहा-अब मजा आएगा,फिर मैं कॉलेज के लिए निकला और अब की बार मैं लेट नहीं होना चाहता था,इसलिए मैंने पहुँचते ही अग्निहोत्री सर की क्लास को अटेंड किया फिर क्लास में सर ने वाद-विवाद के लिए एक टॉपिक रख दिया वह टॉपिक यह था,की एफ.डब्लू.टेलर की विचारधारा श्रेष्ठ है बनाम हेनरी फेयोल की विचारधारा श्रेष्ठ है,मैंने भी इसमें भाग लिया हम सभी पुरे क्लास में दो-दो की जोड़ी बनाकर एक-दूसरे से चर्चा कर रहे थे,मैं दौड़ कर अर्चिता के पास चला गया,और धीरे-धीरे अपनी चर्चा शुरू की हम काफी पीछे बैठे हुए थे हमारी आवाज सर तक नहीं पहुँच रही थी,
मैंने कहा उससे- एफ.डब्लू.टेलर मूवी देखना चाहेगा क्या ?
मेरे साथ,उसने कहा-बिलकुल यदि हेनरी फियोल को कोई आपत्ति नहीं होतो
मैंने कहा-मेरे ख्याल से एफ.डब्लू.टेलर की विचारधारा बहुत अच्छी है,
उसने कहा-सच में,फियोल की भी विचारधारा अच्छी है,
फिर सर ने कहा-ओके टाइम अप ,सब अपने-अपने जगह में आ गए। मैं भी अपने जगह में आकर बैठ गया।और फिर सर ने कहा-ओके, आप लोग इन दोनों विचारधाराओं को अच्छे से समझ लेना,ठीक है,इतना बोलकर सर चले गए फिर दीपाली मैम की क्लास थी उन्होंने हम सभी को कुछ प्रश्न समझाए और कुछ बनाने के लिए दिए इतने में ही वो सभी के आस-पास आकर प्रश्न चेक करने लगी और लगभग सभी ने बना लिया था,पर मैंने भी कोशिश की और मैम को दिखाया मैम मेरे उत्तर को पाँच मिनट तक देखते ही रहीं फिर उन्होंने कहा-ठीक है, सही उत्तर है।थोड़ी देर बाद मैं और अर्चिता एक-दूसरे से बात ही कर रहे थे की,कभी चलते हैं,घूमने कहीं।तभी अर्चिता ने कहा-देबिना को भी साथ ले चलेंगे ।मैंने कहा-ऐसा क्या ?
उसने कहा- क्यों ?
मैंने कहा-कुछ नहीं बस ऐसे ही,
उसने कहा-ओके ,
मैंने कहा-और बताओ क्या चल रहा है ?,
उसने कहा-कुछ नहीं,
मैंने कहा कहीं चलते हैं इस वीकेंड,
उसने कहा-देखते हैं,
मैंने कहा-वैसे भी मैंने मुवि के लिए कहा था,क्या हुआ ? चलोगी ना,
उसने कहा-ओके,
फिर यूँ ही कुछ देर तक बात हमारी चलती रही उसके बाद हम सभी नीचे आगये,तभी देबिना ने मुझे रोका और कहा-आजकल तुम बहुत ज्यादा अर्चिता के साथ रहने लगे हो,मेरा कॉल तक रिसिव नहीं करते मैंने कहा-ऐसी बात नहीं है,ऐसे ही है,थोड़ा व्यस्त था,तुम जो सोंच रही हो,ऐसा बिलकुल नहीं है,उसने कहा-ओके फिर तुम चलना मूवी इस वीकेंड,
मैंने कहा-कौन-कौन जा रहा है,
उसने कहा-मैं और अर्चिता और तुम भी ,
फिर मेरा दिमाग फिर से खराब हो गया था,मैं देबिना के साथ रहना नहीं चाहता था,और किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं रखना चाहता था,हाँलाकि वो भी मेरे चेहरे के भाव देखकर समझ पा रही थी ,की मैं उसे नहीं चाहता,तथा मैं सोंच रहा था,की वो मुझे और अर्चिता को साथ में देखकर कैसा फील करती होगी ।कुछ दिनों तक मैंने देबिना से बात नहीं की क्योंकि,मुझे पता नहीं क्यों पर देबिना का नाम सुनते ही गुस्सा सा आने लगता था,पर ये भी एक बात थी की मैं अपनी दोस्ती भी उससे खराब नहीं करना चाहता था,और किसी नए प्रकार के रिश्ते जो की मैं अर्चिता के लिए फील करता था,उसमें कायम रहना चाहता था,लेकिन मुझे खराब भी लग रहा था, की मैं जिसको पसन्द करता हूँ,वो ऑलरेडी किसी और से सेट है,और जो मुझे पसन्द करती है,मैंने कभी उस तरह के रिश्ते के लिए सोंचा नहीं,
सुबह -सुबह अर्चिता का फोन आया उसने कहा-हे अनिरुद्ध तुम चलोगे,
मैंने कहा-बिलकुल मैं जरूर चलूँगा,
फिर उसने चाय-कॉफी के बारे में पूछा,
मैंने कहा-अभी जस्ट बना रहा हूँ,
उसने कहा-एन्जॉय करो कॉफ़ी ,
मैंने कहा-ओके।
मेरा दोस्त जो की ब्रेकफास्ट का मास्टर था ,उसने दो मिनट में मैगी बनाई ,फिर हम सब ने स्वाद लेकर खायी।मैं अपनी बालकनी में खड़े होकर आसानी से पक्षियों को आकाश में उड़ते देख पा रहा था,अब सूर्य ठीक मेरे चेहरे पर अपनी रौशनी फेंक रहा था,मैं नीचे फर्श में बैठकर कॉफी पीने लगा,नीचे देखने पर कुछ महिलाएं ठेले को घेर कर खड़ी थी,और फल-सब्जियों के दाम पर ठेले वाले से मोल-भाव कर रही थी, वहीं नीचे एक लड़की शायद उसने लिवाइस की फिट जीन्स और वाइट टॉप पहने हुए थी,वो किसी से कुछ पता पूछ रही थी,फिर उसने एक अंकल से पूछा उसने ऊपर मेरी तरफ इशारा करके बताया वो मेरी तरफ ही देखने लगी मैं स्माइल कर दिया उसने भी स्माइल की मेरे तरफ देखने लगी फिर मैं उसे देखता ही रहा,वो ऊपर की ओर आने के लिए बिल्डिंग के अंदर चली गयी मैं अपनी कॉफी ही पीने लगा ।फिर अचानक से डोर बेल बजी मैंने सोंचा कोई होगा ,फिर जैसे ही मैंने दरवाजा खोला वही लड़की थी,वह लड़की झांक के अंदर की ओर देख रही थी ,
मैंने कहा-क्या हुआ ?
उसने कहा-रवि अवस्थी हैं क्या ?
मैंने कहा -हैं,आइये बैठिये,मैं झट से किचन में गया और रवि से बोला-जाबे तेरी माल आई है,
उसने कहा बकवास मत कर,सच्ची।
वह किचन से बाहर और बैठक रूम की ओर बढ़ने लगा,फिर उसने उससे बातचीत शुरू कर दी मैं किचन के पर्दे से झांक कर देख रहा था,बात तो सुनाई नहीं दे रही थी,पर उसके चेहरे के हाव-भाव से थोड़ी बहुत बातें समझ में आ रही थी,वो लोग किसी बात या मुद्दे पर बहस को शांति से सुलझा रहे थे ,मैं उनकी बातें सुनना चाहता था,मैंने चाय बनाया और बिस्कुट भी ट्रे पर रखी और उनकी ओर बढ़ा उस लड़की ने मुझे अपनी ओर बढ़ता देख वह स्माइल कर रही थी,पर मैं और ज्यादा स्माइल नहीं करना चाहता था, यही वजह थी,फिर मैं उसके पास पहुंचा मैं उनकी बातें सुन पा रहा था,वो सच में बहुत गोरी और खूबसुरत लग रही थी ,उसकी परफ्यूम की महक पुरे रूम में फ़ैल चुकी थी,मैंने ट्रे रखा और उससे हाय बोला वह भी मुझे हाय बोली,
रवि ने कहा-ये मेरे ही ऑफिस में काम करती है,
फिर मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा -और सब ठीक।
फिर उसने कहा -तुम्हारा नाम क्या है ?
मैंने कहा अनिरुद्ध सिंह और तुम्हारा,
उसने कहा-स्वपना ठाकुर,मैंने कहा-"नाइस नेम" ,
उसने कहा-ह्म्म्म,
फिर थोड़ी देर में रवि ने मुझे कोहनी टकराते हुए कहा-मिस्टर शेरलॉक और कुछ जानकारी चाहिए या फिर यहीं बसने का इरादा है ।मैंने कहा-ओके बॉस मैं जा रहा हूँ ।फिर मैं वापस किचन में आ गया ,उनकी बातें अभी भी सुनाई दे रहीं थी ।फिर अचानक मेरा फोन रिंग हुआ ।ये देबिना थी मन तो कर रहा था की नहीं उठाऊँ,फिर सोंचा कुछ जरूरी बात होगी,इसलिए उठाया,
उसने कहा-ओके,तुम आ रहे हो ना,
मैंने कहा -ओके,
वह फिर कुछ-कुछ बातें जबरदस्ती मुझसे कर रही थी,मानों ऐसे की जैसे उसे पता हो की मुझे उससे बात करने में कोई इंट्रेस्ट ही नहीं है,फिर भी मुझे गुस्सा आने लगता था,उसने नाम से उसके साथ से ,फिर भी फ्रेंडशिप के कारण मैं उसे झेल रहा था,फिर अचानक बात के दौरान अर्चिता की बात मेरे मुँह से निकल गयी और वह चुप हो गयी मैं वही चाहता था,की उसे हर्ट करूँ फिर भी ,मेरे दिमाग को भी समझ आ गया था की ओवर एक्टिंग और नहीं हो सकता,फिर मैंने ही कहा-कल जायेंगे बाय गुड नाईट ,उसने भी कहा-गुड नाईट।