Thursday, 8 November 2018

अल्फ़ाज़

ज़ाहिर है जो ज़माने में उसे कैसे छिपाओगे,
ज़नाब भले ही गलियाँ तुम्हारी मगर शहर तो अपना है,
वो कहता है की बेचैन हवाओं की मंज़िल नहीं होती,
पर वो खुब जानता है की कहां शहर होना है,

Tuesday, 6 November 2018

किस्मत ए वफ़ा

जमाना जिसकी हरकतों पर कायल था,
हम बहुत पहले ही उनको दफ़ा कर चुके थे,
बेवफा तो वो थी जिससे हम वफ़ा कर बैठे थे,
हर्फ़ हर्फ़ लफ़्ज़ों की हकीकत सामने आई,

ज़िन्दगी भी वही किस्मत तलाशना शुरू कर देती है,
जिसमें वो तो नहीं होती थी मगर उसकी यादें होती थी,
एक जंग सी ज़िन्दगी के लिए कौन ख्वाइश करता है भला,
लेकिन ये तो शायद लिखा ही होता है कहीं जो होना होता है,

कई दफ़ा हमारे अल्फ़ाज़ हमारे दरारों को भरते हैं,
लेकिन किसी रोज ये जहर सी ज़ख्मों पर नमक भी मल जाते हैं,
बेइंतहां प्यार भी पता नहीं कहाँ दुबक के चल देता है,
और मायूसी के मायने पीछे छोड़ जाता है जिसे लोग देखते हैं,

आखिर क्यों दर्द का असर और इलाज दोनों एक ही होता है,
शायद हमारे ज़ज़्बातों की तबियत सही नहीं हो पायी,
या प्यार बाँटने को समय कम पड़ गया या फिर कुछ और,
शायद हम अब भी एक दूसरे को वैसे ही देखते हैं जैसे कि पहले,

ملیحہ مصافر कठोर मुसाफ़िर (मिनी सिरीज़)

मलीहा मुसाफ़िर एपिसोड -१  जीवन काल के सीमित चक्र में मानव बाल्यकाल से लेकर अपने अंतिम क्षणों तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है,और खुद को हर तरह क...