ज़ाहिर है जो ज़माने में उसे कैसे छिपाओगे,
ज़नाब भले ही गलियाँ तुम्हारी मगर शहर तो अपना है,
वो कहता है की बेचैन हवाओं की मंज़िल नहीं होती,
पर वो खुब जानता है की कहां शहर होना है,
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