Thursday, 8 November 2018

अल्फ़ाज़

ज़ाहिर है जो ज़माने में उसे कैसे छिपाओगे,
ज़नाब भले ही गलियाँ तुम्हारी मगर शहर तो अपना है,
वो कहता है की बेचैन हवाओं की मंज़िल नहीं होती,
पर वो खुब जानता है की कहां शहर होना है,

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