Friday, 10 May 2019

{झटपट किस्सा नया खण्ड} वो आंखरी मुलाकात

{झटपट किस्सा नया खण्ड}
वो आंखरी मुलाकात
बार-बार हाथ में बंधे घड़ी को देख-देख कर मन भी टिक-टिक करने लग गया था।अब बस उसी का इंतज़ार था लेकिन अब ये रास्ता उस जगह नहीं जाने वाला था।बहुत पहले ही सभी बातों पर बहस हो चुकी थी।
ये तो बस एक आंखरी मुलाकात थी,बस एक आंखरी मुलाकात।मुझे न तो कुछ साबित करना था न उसे।पर पता नहीं क्यों फिर एक अजीब सी बेचैनी थी अंदर।
उसके आते ही कुछ तो अजीब हुआ था उस दिन मैं आज भी उस दिन को सोंचता हूँ, तो एक बार में समझ पाना  थोड़ा मुश्किल सा लगने लगता है।
मुझे उम्मीद सबसे खराब बातचीत की थी लेकिन वहां उसके होते हुए ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,वो कहते हैं  ना उम्मीद अच्छे की करो भले मेहनत कितना भी करो।पर मैं फिर भी सन्न था कि मेरे इस तरह अलग सोचने पर भी ये सब ठीक तरह से कैसे हो रहा है।
फिर चंद मिनटों बाद उसने बोला ,रिश्ता ही खत्म करना है ना तो क्यों न अच्छे से करें।मैं उसके इस तरह के रवैये से बौखलाया हुआ था।
फिर भी वो मुझे बहुत ज्यादा सही क्यों लग रही थी पता नहीं।
"कोई भी रिश्ता हो आसान किस्तों में नहीं टूट सकते ,उसके कुछ टुकड़े अक्सर अपनों के बीच दरार बन जाते हैं।

Monday, 6 May 2019

Gulab aur zindagi

कुछ मुरझाए गुलाब की पंखुड़ियों की ही तरह,
कुछ अजीब सी लगने लगी है जिंदगी,
अब इन मुलायम पंखुड़ियों की कोई जगह नहीं,
ज़िन्दगी और भी बहुत कुछ है इसके बग़ैर....

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मलीहा मुसाफ़िर एपिसोड -१  जीवन काल के सीमित चक्र में मानव बाल्यकाल से लेकर अपने अंतिम क्षणों तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है,और खुद को हर तरह क...