Monday, 4 December 2017

बस चलते जाना है....

क्या खोजना है क्या पाना है,
बस जो भी है उसे गवां जाना है,
आखिर सफर ज़िन्दगी का है,
मुसाफिर तो बन ही चुका हूं,
अब चलते ही जाना है,

जब तलख रुक न जाऊं,
कुछ तो कर लूं अपने नाम,
दोस्ती,यारी,लगाव जो भी ,
यही है जो दे सकता हूँ,
वरना किस जहां में मिलूं,

कुछ खोजने की जरूरत नहीं,
क्योंकि तू जानता है मुझमें ,
जरूरत तो जरूर ही होगी,
और उसी मुताबिक होगी,
की क्या हुआ मैं ज़िन्दगी का,

सफर,अफसाना या फिर महज इत्तेफाक,
अगर ये भी नहीं तो है ना तेरी यादें,
जिनमें तेरी गलियों में शहर हुआ था,
खबर क्या है ज़िन्दगी शब्द भी जल बैठे,
रोशन भी कौन हुआ जो हीरा था,

आ रे आ रे कोई तो आ रे ,
ज़िन्दगी को समझा रे,
की बहुत हुआ मनमानी,
अब तो सम्भल जा जरा,
ये कहे दिल को सम्भाल जरा,

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