वक्त भी अजीब हरकतें करा देता है,
बेवक्त किसी से भी लड़ा देता है,
गलत खराब कुछ भी कहला देता है,
और अब ज़ुबान भी बर्फ कर देता है,
पछतावा नहीं ये सिर्फ बैचेनी होती है,
दोहराना उसी को बस ये काम होता है,
किये गलती को भुगतने उछलते हैं,
बैचेनी जैसे नशीली लोबान में घुटती है,
और फिर ज़िन्दगी ज़हर ढूढती है,
बेखबर नहीं बस वक्त ने भूला दिया है,
ख्वाबों के आईने देख के पागल हुआ हूं,
दरख्तों के सायों में भटकता चला हूँ,
इस जनम रोजाना जैसी बात कहाँ,
जिसकी गलती जिसे डूबा दे,
अब कौन बचाए उसे,
जो खुद ही समंदर में गोते लगाए,
फिर सन के ज़हर में बाहर आए,
यूँही कटती रही ज़िंदगानी,
किसी रोज तो मिले माफ़ी,
शायद गलती मेरी माफी से थी बड़ी,
और बचे कुछ मेरे दिन आखरी ,
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