समय बांटता था लोगों को,
और ख्याल संजोता था,
अब सपने बुनता हूँ,
अब यहीं का हूँ लगता है,
सच और सपने में फर्क कहां,
दिली ख्वाहिस थी के काश होती वो,
देखती होता क्या है,जिंदा आशिक़ों का,
बिना सनम के ज़िंदगानी बिताके,
हरफनमौला अंदाज और दुखद ज़ज़्बात,
हिम्मत नहीं होती आजकल लोगों में ,
वरना पहले तो कसमें नहीं टूटती थी,
भले ही इंसान पहले टूट जाते थे,
फिर भी मर के भी साबित कर जाते थे,
के होगा उनसे प्यारा कौन,
धोखा देना फैसन बना लिया हैं,
या यूं कहें बिना हिम्मत प्यार करती हैं,
थोड़ा दबाव बना नहीं कि बीवी बन जाती है किसी की,
कौन करता है भाई ऐसे मेरा दिल है धर्मशाला नहीं,
माना के समय बदला है पर सराफत का भी जमाना नहीं,
आज तक का रिकॉर्ड रहा है प्यार का,
जिस बन्दें ने सबसे सिद्दत वाला फ़रमाया,
उसे ही बेवफाई का सामना करना पड़ा है,
बाद में लोग हर बोझ हालात पर मढ़ देते हैं,
सच ये होता है वो कायर होते हैं,
बहुत कम ही होते हैं जो इसे हासिल करते हैं।
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