Friday, 12 October 2018

तेरी ही यादें

तेरे चेहरे की हल्की सी मुस्कुराहट ,
न जाने कितनी देती है,खुशी,
वो समय सच में बेहद हसीन होते हैं,
जिनमें अक्सर तुम होती हो,

जी तो करता है कि नाम ही देदूँ,
इस मोहब्बत को जिससे तुझमें शाम रहूं,
क्या खूब फरमाया किसी ने कह कर यूँ,
इश्क है तुमसे बस इतना समझ लो,

बेहद मिन्नतों के बाद मक़बूल हुई है,
वरना दुआएं तो रोज ही मांगा करते थे,
तुम जो मिले जैसे चाँद उतर आया ज़मीन पर,
खूब खुदा की रहमतें जो तुझ संग नैन मिले,

ज़ुल्फ़ों की घनी शाम तुझ से ही,
मेरी हर सुबह और रात तुझ से ही,
तुझ ही से है,प्यार,इश्क़ और मोहब्बत,
वरना बस ये रह जाती एक इबादत,

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