Sunday, 14 April 2019


मेरी पल दो पल की बेचैनी....Part 1
(अनुराग यादव)
(यूँही झटपट काल्पनिक किस्सा)
उसे जितना मैं पसन्द था वो मुझे उससे कहीं ज्यादा प्यार करती थी।ये रिश्ता सच में हमदोनों के बीच एक अटूट बन्धन से बनते जा रहा था।दो महीने पहले उससे बात हुई थी,सब कुछ सही चल रहा था पर पता नहीं क्यों? उसने अजीब बर्ताव करना शुरू कर दिया था,जैसे कि उसे मेरी कोई जरूरत ही उसके इस नीरस रवैये से मन एक अजीब सी घबराहट को महसूस कर रहा था,शायद मैं डरा हुआ था।
मैं सच में डरता था कि कहीं उसे खो न दूँ, लेकिन वो मेरी हर उदासी को अपने तरफ से नफ़रत के अंगारों की तरह मुझपर बरसा रही थी।वो किसी भी बात को साफ-साफ कभी नहीं बताती थी।जिसका ख़ामियाजा मुझे भुगतना पड़ता था।
आज भी जब उस दिन को याद करता हूँ,तो दिल सहम सा जाता है।वो उस दिन आंखरी बार मिलने आई थी।
वो दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे कड़वा दिन लग रहा था, मैंने उससे पूछा बात क्या है,उसने कहा कि वो किसी और को चाहने लगी है।
नजाने क्यों उसके मुंह से कही गई हर बात मुझे झूठी लग रही थी।और शायद वो मुझे अपनी जिंदगी में देखना भी नहीं चाहती थी शायद।मैंने उससे एक आखरी बार गले लगाना चाहा लेकिन उसने मुझसे ये हक़ भी छीन लिया।
ये परिस्थित थोड़ी अजीब थी मैं इसे न तो गुस्सा बोल सकता था न हीं ,नफ़रत तो आखिर ये था क्या?
आज इस बात को करीब 5  साल हो चुके हैं,और उस दिन के बाद से वो मुझे कहीं दिखाई नहीं दी।
लेकिन मैं आज भी उसके प्यार को भुला नहीं हूं न ही भूला पाऊंगा।
आज पछताने के अलावा कुछ नहीं मेरे पास,की काश  मैंने कुछ कर लिया होता।
मन में अभी भी लगता है कि अगर मैं उसको थोड़ा मनाने की कोशिश करता तो शायद वो मान सकती थी।
आप ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए था?

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