जैसे कोई सपना हो,
जिसमें हमेंशा कोई अपना हो,
चाहत तो बेइंतहा है प्यार पे,
पर ये न मिल पाने का गम भी है,
शायद कहीं और से लिखा गया है,
तक़दीर हमारी वरना शब्द तो क़ाबिल होते,
मलीहा मुसाफ़िर एपिसोड -१ जीवन काल के सीमित चक्र में मानव बाल्यकाल से लेकर अपने अंतिम क्षणों तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है,और खुद को हर तरह क...
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